यात्रा वृत्तांत >> स्वर्ग यात्रा (एक लोक से दूसरे लोक) स्वर्ग यात्रा (एक लोक से दूसरे लोक)मनोज सिंह
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प्रकृति में पर्वत मुझे विशेष रूप से आकर्षित करते हैं। और सौभाग्य से हिमालय हमारे पास है। फिर और क्या चाहिए।
प्रकृति में पर्वत मुझे विशेष रूप से आकर्षित करते हैं। और सौभाग्य से हिमालय हमारे पास है। फिर और क्या चाहिए। यह कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक न जाने किस-किस नाम और रूप में फैला हुआ है। मध्य में स्थित हिमाचल प्रदेश में कुछ एक साल रहने का अवसर मिला था तो उस दौरान किन्नोर से लेकर लाहौल स्पती, रोहतांग पास की यात्रा का चुका हूँ। यहाँ लद्दाख के बारे में बहुत कुछ सुनने को मिला था। कुछ ऐसे तथ्यों की जानकारी हुई कि उत्सुकतावश वहां जाने की इच्छा हुई थी। लद्दाख वो क्षेत्र है जो आज भी दुर्गम है। आम भारतीय पर्यटक की कल्पना और चाहत से बाहर। मगर इस क्षेत्र में सदियों से विदेशी आ रहे हैं। खासकर यह जानकर अचम्भा होता है कि यूरोप के कई विद्वान यहाँ तब से आ रहे हैं जब यहाँ कोई भी साधन नहीं था। हजारों साल से यह पश्चिम एशिया से लेकर मध्य एशिया और आगे यारकंड व् तिब्बत के बीच व्यापार का एक प्रमुख मार्ग रहा है। बौद्ध भिक्षु इसा पूर्व इस क्षेत्र में आने लगे थे। और यही नहीं, इस क्षेत्र को उन्होंने बुद्धमय कर दिया था। सोचिए, एक ऐसा प्रदेश जो आज भी दूर दिखाई देता है वहां शताब्दियों से बोद्ध-दर्म विराजमान है। इन सब धार्मिक व् बौद्धिकजनों के साथ-साथ व्यापारियों और सेनाओं का काफिला, कश्मीर से होता हुआ ही आता-जाता रहा। कश्मीर और लद्दाख, हिमालय की दो विशिष्ट घाटियाँ हैं। दो पारंपरिक व् समृद्ध सभ्यताएं। प्राचीन संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य के दो अति महत्त्वपूर्ण केंद्र, इतने नजदीक! इसे प्रकृति और मानवीय इतिहास का संयोग ही कहेंगे। संक्षेप में कहूं तो यह यात्रा प्रकृति के बीच कदमताल करने जैसी थी। मुश्कलों से सामना हुआ, तो क्या! प्रकृति भी तो अपने नग्न रूप में उपस्थित हुई। मूल रंग में। पूरे वैभव के साथ। विराट। मुश्किल इस बात की हुई है कि सौंदर्य को देखते ही मन-मस्तिष्क स्थिर हो गया। उठ रहे विचारों का अहसास तो हुआ मगर व्यक्त कर पाना मुमकिन न हो सका। विस्तार इतना कि वर्णन संभव नहीं। असल में आँखे ही देख सकती हैं, कैमरे व्यर्थ हो जाते हैं।
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